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Mumbai University की संदिग्ध भूमिका: फर्जी शिक्षकों और अवैध पदोन्नतियों को संरक्षण

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Mumbai University shikshak bhrashtachar

• स्प्राउट्स विशेष जांच: कॉलेज नियुक्तियों में कथित भ्रष्टाचार और अवैध वेतन निर्धारण का पर्दाफाश

उन्मेष गुजराथी
स्प्राउट्स न्यूज़ एक्सक्लूसिव

स्प्राउट्स न्यूज़ की विशेष जांच टीम (SIT) द्वारा की गई एक ताज़ा जांच में कल्याण (Kalyan) के एक प्रमुख कॉलेज में अवैध नियुक्तियों और अनैतिक पदोन्नतियों के गंभीर आरोप सामने आए हैं।

साल 2014 में सुहास महादेव भगत (Suhas Mahadev Bhagat) को जूनियर लाइब्रेरी क्लर्क के पद पर नियुक्त किया गया था, जबकि वह इस पद के लिए निर्धारित योग्यता मानदंडों को पूरा नहीं करते थे। उस समय के संयुक्त निदेशक डॉ. विजय नारखेडे (Vijay Narkhede) ने उनकी नियुक्ति को खारिज कर दिया था, लेकिन कॉलेज के प्राचार्य और संयुक्त निदेशक की मिलीभगत से भगत को छह महीने का विशेष समय दिया गया ताकि वे योग्यता पूरी कर सकें।

भगत की नियुक्ति ने उन दस योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों का उल्लंघन किया, जिन्होंने इंटरव्यू भी दिया था। इनमें से एक उम्मीदवार ने इस अन्याय के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन अधिकारियों ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।

अशोक मिश्रा (Ashok Mishra) की संदिग्ध नियुक्ति का मामला:

एक और विवादास्पद मामला अशोक मिश्रा (Ashok Mishra) की नियुक्ति से जुड़ा है, जिन्हें लैब असिस्टेंट के पद पर अवैध तरीके से नियुक्त किया गया। 2014 में यह पद कृष्णा डी. सिंह (Krishna D. Singh) द्वारा वैध रूप से भरा गया था, और 2016 में उनकी नियुक्ति की पुष्टि भी की गई थी। बावजूद इसके, मिश्रा को न केवल अवैध रूप से नियुक्त किया गया बल्कि उन्हें सातवें वेतन आयोग (7th Pay Commission) के लाभ भी प्रदान किए गए, जबकि वे जूनियर क्लर्क कम कैशियर के रूप में काम कर रहे थे।

कृष्णा सिंह (Krishna Singh), जो वर्तमान में कॉलेज से निकाले जाने के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, उनका दावा है कि उनकी बर्खास्तगी कॉलेज के चेयरमैन और उनके ससुर डॉ. आर. बी. सिंह (Dr. R. B. Singh) के साथ व्यक्तिगत विवाद का परिणाम है, ऐसा कोर्ट के आर्डर (prima facie) में लिखा है।

स्प्राउट्स के सूत्रों के अनुसार, मिश्रा के वेतन निर्धारण में कॉलेज की प्राचार्या अनीता मन्ना (Anita Manna), संयुक्त निदेशक डॉ. केशव तूपे (Dr. Keshav Tupe) और जूनियर प्रशासनिक अधिकारी युवराज सालुंखे (Yuvraj Salunkhe) की संदिग्ध भूमिका रही है।

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भ्रष्टाचार का एक पैटर्न

स्प्राउट्स की जांच में यह चौंकाने वाला पैटर्न सामने आया है कि कॉलेज स्टाफ को बिना आवश्यक योग्यता के नियुक्त किया जा रहा है और कई मामलों में उन्हें अवैध तरीके से पदोन्नतिया और वित्तीय लाभ भी दिए जा रहे हैं।

यह समस्या सिर्फ कॉलेज तक सीमित नहीं है; मुंबई विश्वविद्यालय (Mumbai University) ने भी फर्जी दस्तावेजों के बावजूद कई संकाय सदस्यों की नियुक्ति को वैध ठहराया है।

अग्रवाल कॉलेज (Agarwal College) में फर्जी डिग्री का मामला

के. एम. अग्रवाल कॉलेज (K. M. Agarwal College), कल्याण (Kalyan) में सहायक प्रोफेसर महेश कमलाकर भिवंडीकर (Mahesh Kamalakar Bhiwandikar) का मामला सबसे चौंकाने वाला है। भिवंडीकर ने एक गैर-मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से फर्जी मास्टर्स ऑफ कॉमर्स (M.Com) की डिग्री के आधार पर नौकरी हासिल की थी।

कॉलेज प्रशासन को इस फर्जी डिग्री की जानकारी होने के बावजूद उन्होंने भिवंडीकर को 25 वर्षों तक पढ़ाने की अनुमति दी। भिवंडीकर ने फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए SET परीक्षा भी पास की और विश्वविद्यालय में छह बार अवैध प्रोन्नति हासिल की।

कार्रवाई की कमी और अनियमितताओं की निरंतरता

भ्रष्टाचार के पर्याप्त सबूतों के बावजूद, कॉलेज और विश्वविद्यालय के अधिकारियों, जैसे कि प्राचार्या अनीता अरुण मन्ना (Anita Arun Manna) और संयुक्त निदेशक डॉ. विजय नारखेडे (Dr. Vijay Narkhede), ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

RTI जांच में यह भी सामने आया कि अग्रवाल कॉलेज के अन्य स्टाफ सदस्य, जिनमें प्राचार्या मन्ना भी शामिल हैं, के पास भी उचित योग्यताएं नहीं थीं, लेकिन उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता दी गई।

जवाबदेही की मांग

इन आरोपों की जांच ने कॉलेज और विश्वविद्यालय (Mumbai University) की नैतिकता और कानूनी मानकों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। जनता में इस मुद्दे को लेकर आक्रोश है, और अब पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग तेज हो गई है।

स्प्राउट्स न्यूज़ इस मामले की गहराई से जांच जारी रखेगा ताकि सत्य उजागर किया जा सके और शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोका जा सके।

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